पीलूपुरा में जब खून से लाल हुई रेल पटरियां, गुर्जर आरक्षण आंदोलन पर वसुंधरा निपटी, अब भजनलाल का लिटमस टेस्ट

भरतपुर. पिछले दो दशकों से राजस्थान के हर सत्तारूढ़ दल को गुर्जर आरक्षण आंदोलन का ताप झेलना पड़ा है. राजस्थान का करौली, दौसा, टोंक, सवाई माधोपुर, भरतपुर, बयाना, हिंडौन और गंगापुर साल 2006 से गुर्जर आरक्षण आंदोलन का गवाह रहा है. इस आंदोलन के पहले चार सालों में हुई हिंसा में ही कम से  कम 75 लोगों की मौत हुई जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए. पिछले 20 सालों में गुर्जर आंदोलन संघर्ष समिति ने 6 बड़े आंदोलन किए हैं, जिसमें तीन बार भारी हिंसा हुई है.

इसमें सबसे हिंसक आंदोलन भरतपुर के पीलूपूरा में हुआ. जब गोलीबारी में कम से कम 37 लोगों की मौत हो गई. पीलूपुरा गोलीकांड से पहले जानिए आखिर कैसे शुरू हुआ गुर्जर आरक्षण आंदोलन… 

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने 2006 में शुरू किया आंदोलन
गुर्जर समुदाय भारत के राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और दिल्ली में फैला हुआ है. सामाजिक हैसियत के चलते इन्हें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया है. राजस्थान में यह समुदाय अति पिछड़ा वर्ग (MBC) में शामिल है तो जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में यह अनुसूचित जनजाति (ST) में रखा गया है. वहीं, दिल्ली में यह समुदाय सामान्य श्रेणी में आता है
राजस्थान में गुर्जर समुदाय के आंदोलनकारी नेता यह तर्क देते हैं कि उनका जीवन स्तर, सामाजिक स्थिति और आर्थिक स्थिति अनुसूचित जनजाति में शामिल समुदायों से भी कमजोर है. अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को मांग को लेकर कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने साल 2006 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन की शुरुआत की. 

पीलूपुरा से पहले साल 2007 में हुई भारी हिंसा
उस समय राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार थी. आंदोलन की तैयारियां साल 2006 में शुरू हुई. कई दौर के वार्ता के बाद भी कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ. मई 2007 में गुर्जर आंदोलन करौली-दौसा जिले में व्यापक रूप से फैल गया. मामले को संभालने के लिए पुलिस की फायरिंग में 26 लोगों की मौत हो गई थी.

23 मई 2008 को पीलूपुरा में हुआ क्या था
इस दिन पीलूपुरा में हजारों गुर्जर आंदोलनकारी रेल की पटरियों पर बैठ गए. उन्होंने ट्रेनों को रोका और सभी सड़कों को बंद किया गया. देखते ही देखते आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया. आंदोलनकारियों का पुलिस और अर्धसैनिक बलों से टकराव हो गया. इसी टकराव में पुलिस ने फायरिंग कर दी और कुछ ही घंटों में लाशें बिछ गईं. इस घटना के बाद पीलूपुरा ही नहीं बल्कि आस-पास के कई गांवों में तनाव फैल गया.
महिलाओं ने अपने बेटों और पतियों की लाशें संभालीं और उन्हें शहीद कहा गया. गुर्जर नेताओं ने शवों को रेलवे ट्रैक पर रखकर प्रदर्शन किया. इस घटना में कम से कम 37 लोगों की मौत हुई जबकि सैकड़ों घायल हुए. 

2 महीने तक चले आंदोलन में मामला बुरी तरह बिगड़ा
मई-जून 2008 में चले आंदोलन में वसुंधरा राजे सरकार की छवि को भारी नुकसान पहुंचा. जिसका असर चुनावों में भी पड़ा. इसी साल के अंत में राजस्थान में विधानसभा चुनाव भी होने वाले थे. अगले साल लोकसभा चुनाव भी हुए. साल विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 120 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई थी. वहीं 2008 में उसे 42 सीटों का नुकसान हुआ और सीटों की संख्या घटकर 78 ही रह गई.
दूसरी ओर कांग्रेस की सीटें 56 से बढ़कर 96 हो गई और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बन गए. लोकसभा चुनाव 2004 में बीजेपी राज्य के 25 सीटों में 21 सीटों में पर जीत हासिल की जबकि कांग्रेस को सिर्फ 4 मिली थी. वहीं, 2009 में ठीक पासा पलटा और कांग्रेस ने 20 जीती जबकि बीजेपी 4 पर सिमट गई. 

हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि पीलूपुरा भरतपुर जिले में पड़ता है. इस जिले में सात विधानसभा सीटें हैं. 2008 विधानसभा चुनाव में इस जिले के 7 सीटों में पांच पर बीजेपी ही जीती, जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक ही सीट मिली. वहीं, भरतपुर में साल 2004 में बीजेपी के टिकट पर विश्वेंद्र सिंह जीते थे, लेकिन 2009 में यह सीट कांग्रेस के रतन सिंह जाटव ने जीत ली.
2015 में गुर्जर समुदाय को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किया
2008 के आंदोलन के बाद साल 2010 में कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला के नेतृत्व में एक बार हिंसक आंदोलन हुआ, जब सवाई माधोपुर, बयाना और दौसा में 10 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल भी हुए. गुर्जर आंदोलनकारियों ने रेल पटरियों पर कब्जा किया और कई जिलों में कर्फ्यू लगाना पड़ा. 

साल 2013 में वसुंधरा राजे ने एक बार फिर सत्ता संभाली. उस समय हाईकोर्ट ने गुर्जर समुदाय को विशेष पिछड़ा वर्ग (SBC) में शामिल करने का फैसला दिया. जिससे आंदोलनकारी नाराज थे. उसी साल राजे सरकार ने कई दौर की वार्ताओं के गुर्जरों को 1% आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग (MBC) श्रेणी में दिया.
हालांकि आंदोलनकारी इससे संतुष्ट नहीं हुए. साल 2018 विधानसभा चुनाव से पहले दौसा, करौली, बयाना, जयपुर-बयाना रेल रूट पर जाम और आंशिक हिंसा हुई. आंदोलन अधिकतर शांतिपूर्ण रहा, लेकिन कई जगह पथराव, आगजनी और पुलिस की हल्की झड़पें हुईं. 2018 में एक बार गहलोत सत्ता में लौटे तो उन्होंने अगले साल ही इसे MBC कोटे में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 5% किया. हालांकि, गुर्जर समुदाय का कहना है कि उनकी मांगें पूरी तरह पूरी नहीं हुई हैं. 

अब कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे दे रहे सरकार को चुनौती
कोविड के दौरान साल 2020 में गुर्जर आरक्षण आंदोलन भी चला. हालांकि, इस बार तनावपूर्ण हालात में भी कोई हिंसा नहीं हुई. इस बीच आंदोलन के सबसे बड़े नेता किरोड़ी सिंह बैंसला साल 2022 में गुजर गए तो आंदोलन की कमान उनके बेटे विजय बैंसला ने संभाल ली. अब 5 साल बाद आरक्षण के मुद्दे पर ही गुर्जर महापंचायत हो रही है.

भजनलाल सरकार में गृह राज्य मंत्री जय सिंह बेढम कह रहे हैं कि सरकार वार्ता के लिए पूरी तरह से तैयार है. विजय बैंसला महापंचायत को संबोधित करने वाले हैं. बैंसला भारतीय जनता पार्टी में ही है. वह साल 2003 में बीजेपी के टिकट पर देवली-उनियारा से चुनाव भी लड़ चुके हैं. अब देखना है कि भजनलाल सरकार इस मुद्दे से कैसे निपटती है.

Leave a Comment